क्या ग्रीनफील्डवासियों की सड़क बनाने वाले पैसों से दिया जाएगा UIC के दिल्ली हेड ऑफिस का 18 लाख बकाया व 2 लाख रुपये महीने का किराया ?

अर्बन इम्प्रूवमेंट कंपनी के पास ग्रीनफील्डस कॉलोनी में ही कई ऑफिस, रेस्ट हाउस आदि हैं मौजूद ! क्या फिर भी रेसीडेंट्स के विकास कार्य में लगने वाले पैसों से दिया जाएगा गैर जरूरी दिल्ली के हेड ऑफिस का किराया ? जो कि 8, 9 लाख रुपये महीने तक भी बढ़ सकता है निर्धारण होने के बाद ?

जैसा की ग्रीनफील्डस कॉलोनी की कई मुख्य सड़कें बेहद ही खस्ता हालत में हैं और निवासीगण बार बार uic से इन अति जर्जर मुख्य सड़कों को बनवाने के लिए गुहार लगा रहे हैं । लेकिन uic के अधिकारीगण पैसों की भारी कमी होने की बात कह कर उनके इस अनुरोध को ठुकरा देते हैं । इसलिए, 2 महीनों में ही ग्रीनफील्डस कॉलोनी के निवासिगणों ने रोड नंबर 116 को लगभग 8 लाख रुपये , रोड नंबर 91 को लगभग 7.5 लाख व अन्य कई और सकड़ों को खुद मजबूरी वश अपनी ही जेब से पैसा इकट्ठा कर के बनाया है ।

इस गंभीर मामले के सामने आने के बाद ग्रीनफील्डस कॉलोनी के रेसीडेंट्स की वेल्फेर संस्था आवासीय सुधार मण्डल (asm) के महासचिव अधिवक्ता सन्नी खण्डेलवाल से संपर्क कर वार्ता की गई ।

वार्ता के दौरान श्री सन्नी खण्डेलवाल जी ने बताया है कि आज न्यूज पोर्टल द्वारा यह एक बहुत ही गंभीर विषय उनके संज्ञान में लाया गया है । इस संदर्भ से जुड़ी कुछ ही जानकारी प्राप्त करने के बाद सन्नी खण्डेलवाल जी ने बताया कि पहले uic का दिल्ली हेड ऑफिस का किराया केवल 349 रुपये महीने था । लेकिन गत वर्ष 2022 में मकान मालिक ने uic से केस जीत लिया और निचली अदालत ने uic को 6 महीने में इस किराये के हेड ऑफिस को खाली करने का निर्णय दिया था । उसके बाद uic द्वारा माननीय दिल्ली उच्च न्यायालय में एक पुनरीक्षण याचिका दाखिल की है जो की विचाराधीन है । इस याचिका में 18 लाख बकाया व 2 लाख प्रतिमाह किराया जमा करने के अंतरिम आदेश किए गए हैं । आगे निर्धारण होने के बाद यह रकम और भी बढ़ सकती है । वहीं दूसरी तरफ ग्रीनफील्डस कॉलोनी के मामले में स्टे के चलते प्राइवेट कंपनी uic (शेयरहोल्डर) की अथाह अचल संपत्ति जैसे लगभग 60 बिना बिके प्लॉट, मथुरा रोड का uic का 2500 गज का प्लॉट आदि को बेचने के लिए, सरकार द्वारा नियुक्त uic डायरेक्टरओं की शक्तियों पर, पिछले 12 साल से, रोक लगी हुई है । जिस वजह से uic स्टाफ का सारा खर्चा व ऑफिस का खर्चा कोलोनीवासियों से लिए गए शुल्क से ही किया जाता है और रेसीडेंट्स से लिए गए पैसों से ही कॉलोनी का बकाया मानकों का कार्य किया जा रहा है जोकी uic (शरहॉल्डर्स) के बचे हुए प्लॉटस से होना था।

इस विषय पर वार्ता के दौरान श्रीमती श्वेता शर्मा एडवोकेट, चेयरपर्सन नवशा फाउंडेशन ने बताया कि अर्बन कंपनी को अपना हेड ऑफिस ग्रीनफील्डस कॉलोनी में ही शिफ्ट कर लेना चाहिए । यहाँ पहले से ही साइट ऑफिस बना हुआ है जिसमें सभी व्यवस्थाएं हैं । और जो भी भारी भरकम गैर जरूरी किराये की रकम की बचत होती है उसको केवल निवासियों के उत्थान व कॉलोनी के विकास में ही लगाना चाहिए ।

अधिवक्ता श्री सन्नी खण्डेलवाल जी ने यह भी बताया कि : अब ऐसी स्तिथि में अगर uic हेड ऑफिस का भारी भरकम लाखों रुपये महीने का किराया अगर रेसीडेंट्स से लिए गए पैसों से किया जाता है तो ये रेसीडेंट्स के साथ बहुत बड़ी नाइंसाफी होगी । क्योंकि uic का लगभग समस्त कार्यक्षेत्र ग्रीनफील्डस कॉलोनी में ही है और जो तीन चार प्लॉट उज्जैन व गांधीधाम में हैं वो भी ग्रीनफील्डस कॉलोनी स्थित साइट ऑफिस के द्वारा ही देख रेख किए जाते हैं इसलिए दिल्ली में ऑफिस की कोई जरूरत ही नहीं हैं । यहाँ के निवासियों को छोटे छोटे कामों के लिए, बहुत मुश्किलों का सामना करके, इतनी दूर दिल्ली हेड ऑफिस जाना पड़ता है । अगर यहीं पर uic हेड ऑफिस शिफ्ट हो जाये तो कॉलोनीवासियों का बहुत समय बचेगा । साथ ही कॉलोनी के विकास में भी बहुत तेजी आ जाएगी और तेजी के साथ कॉलोनी की सभी समस्याएं खत्म हो जाएंगी । साथ में यह भी बताया कि वह सर्वप्रथम इस संदर्भ में परम आदरणीय चेयरमैन सर व uic के आला अधिकारियों से स्पष्ट पूर्ण जानकारी लेंगे और अगर रेसीडेंट्स के साथ कोई नाइंसाफी हो रही है य उनको cheat किया जा रहा है तो अपनी संस्था के पदाधिकारियों व निवासियों से मीटिंग कर इस मामले को जनहित में सेंट्रल गवर्नमेंट व परम आदरणीय uic चेयरमैन श्री भारत भूषण जी समक्ष उठायेंगे।  

ग्रीनफील्डस कॉलोनी के एक सीनियर रेसीडेंट ने वार्ता के दौरान बताया फरीदाबाद की ग्रीनफील्डस कॉलोनी एक प्राइवेट कॉलोनी है जिसको कि अर्बन इम्प्रूव्मेंट कंपनी प्राइवेट लिमिटेड द्वारा विकसित किया जा रहा है । यह कॉलोनी uic द्वारा लगभग 4 दशकों से विकसित की जा रही है लेकिन इतना समय बीत जाने के बाद भी कोलोनाइज़र ने कॉलोनी का तय सरकारी मानकों के अनुरूप विकास कार्य को पूर्ण नहीं किया है जिस कारण कॉलोनी को अभी तक कम्प्लीशन सर्टिफिकेट भी नहीं मिल पाया है । गौरतलब है कि हरियाणा में जब तक प्राइवेट कोलोनाइज़र द्वारा कम्प्लीशन सर्टिफिकेट नहीं लिया जाता है तब तक प्लॉटों की रेजिस्ट्री करने की अनुमति नहीं मिलती है लेकिन फिर भी ग्रीनफील्डस कॉलोनी में धड़ल्ले से रेजिस्ट्री होती हैं, इसकी जांच होनी चाहिए ।

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